Monday, April 23, 2018

Caste System and its Reality : जाति परंपरा और इसकी वास्तविकता (Part 2)

History of Caste System in India, Historical Debate : Varna System
भारत में जाति व्यवस्था का इतिहास : ऐतिहासिक बहस : वर्ण व्यवस्था


In Indian history, 2000 years old scriptures should be considered new. Because main scriptures are written way before birth of Christ. 
भारतीय इतिहास में, 2000 (मसीह के जन्म के बाद) साल पुराने ग्रंथों को नया माना जाना चाहिए है। क्योंकि अधिकांश मुख्य (पुराने) ग्रंथ मसीह के जन्म से पहले लिखे गए हैं।
Who is Brahmin in Kaliyuga? कलियुग में ब्राह्मण कौन है?
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः | वेद-पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः | स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को बताया गया है|
जन्म से (प्रत्येक) मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज, वेद के पठान-पाठन से विप्र (विद्वान्) और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है| 
(Meaning of firstShloka)
By birth everyone is a Shudra (illiterate), by getting Sanskar (getting teacher etc.), one becomes a dvija (take Rebirth), by study of the Vedas one becomes a vipra (Wise), and one who knows Brahman (Supreme truth/God) is a Brahmin. -Skanda Purana
ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप। कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥ [भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 41
हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा (जन्म से नहीं) विभक्त किए गए हैं|
Second Shloka
brāhmaṇa-kṣhatriya-viśhāṁ śhūdrāṇāṁ cha parantapa; karmāṇi pravibhaktāni svabhāva-prabhavair guṇaiḥ. (Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 41)
हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा (जन्म से नहीं) विभक्त किए गए हैं|
The duties of the Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, and Shudras—are distributed according to their qualities, in accordance with their guṇas (and not by birth).
राजन! उन प्राचीन युगों में जो राक्षस समझे जाते थे, वे कलि (कलयुग) में ब्राह्मण माने जाते हैं, क्योंकि अब के ब्राह्मण प्राय: पाखंड करने में तत्पर रहते हैं। दूसरों को ठगना, झूठ बोलना और वैदिक धर्म-कर्मों से अलग रहना --- कलियुगी ब्राह्मणों का स्वाभाविक गुण बन गया है।
In kaliyug, Most Brahmin will behave like Demons of previous yugas. They will lie, will not follow Dharma and deceive people. -Devi-Bhagavata Purana 
Meaning of Dvija, द्विज का अर्थ :
Dvija (Sanskrit: द्विज) means "twice-born". The concept is premised on the belief that a person is first born physically and at a later date is born for a second time spiritually, usually when he undergoes the rite of passage that initiates him into a school for Vedic studies. 
The word Dvija, and its equivalent such as Dvijati, is neither found in any Vedas, any Upanishad, nor in any Vedanga literature such as the Vyakarana, Shiksha, Nirukta, Chandas, Shrauta-sutras or Grihya-sutras. The term is missing in all theological and rituals-related text preceding the 2nd-century BCE, as well as the earliest Dharmasutras texts. 
Please Remember, In Sanskrit one word can have multiple meanings. Meaning of the word depends on its context.
द्विज शब्द 'द्वि' और 'ज' से बना है। द्वि का अर्थ होता है दो और ज (जायते) का अर्थ होता है जन्म होना अर्थात् जिसका दो बार जन्म हो उसे द्विज कहते हैं। द्विज शब्द का प्रयोग हर उस मानव के लिये किया जाता है जो एक बार पशु के रुपमे माता के गर्भ से जन्म लेते है और फिर बड़ा होने के वाद अच्छी संस्कार से मानव कल्याण हेतु कार्य करने का संकल्प लेता है। द्विज शब्द का प्रयोग किसी एक प्रजाती या केवल कोइ जाती विशेष के लिये नहि किया जाता हैं। मानव जब पैदा होता है तो वो केवल पशु समान होता है परन्तु जब वह संस्कारवान और ज्ञानी होता है तव ही उसका जन्म दुवारा अर्थात असली रुपमे होता है।
शब्द “द्विज” किसी भी वेद, किसी उपनिषद में नहीं हैं, न ही किसी भी वेदांगा साहित्य जैसे कि व्यंजन, शिक्षा, निरुक्तता, चन्द, श्रुत-सूत्र या गृहय-सूत्र में पाया जाता है। यह शब्द 2 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से पहले के सभी धार्मिक और अनुष्ठान से संबंधित पाठ में नहीं है। कृपया याद रखें, संस्कृत में एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं शब्द का अर्थ उनके संदर्भ पर निर्भर करता है|
The caste system in India is the paradigmatic ethnographic example of caste. It has origins in ancient India, and was transformed by various ruling elites in medieval, early-modern, and modern India, especially the Mughal Empire and the British Raj. It consists of two different concepts, varna (theoretical classification based on occupation) and jati (Jāti (community) refers to the thousands of endogamous groups prevalent across the subcontinent), which may be regarded as different levels of analysis of this system.
भारत की जाति व्यवस्था नृवंशविज्ञान का एक उदाहरण है|इसकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी||इस में मध्ययुगीन,और आधुनिक भारत के विभिन्न शासक अभिजात वर्गों द्वारा परिवर्तन किया गया था (खासकर मुगल साम्राज्य और ब्रिटिश राज।)
इसमें दो अलग-अलग अवधारणाएं शामिल हैं , वर्ण (व्यवसाय पर आधारित सैद्धांतिक वर्गीकरण) और जाति (उपमहाद्वीप में प्रचलित हजारों अंतर्विवाही समूहों को संदर्भित करता है) |एक जाति को एक गोत्रा ​​के आधार पर विजातीय विवाह करने समूहों में विभाजित किया जा सकता है।
The caste system as it exists today is thought to be the result of developments during the collapse of the Mughal era and the British colonial regime in India.
de Zwart, Frank (July 2000), "The Logic of Affirmative Action: Caste, Class and Quotas in India.
Bayly, Susan (2001), Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age.
The collapse of the Mughal era saw the rise of powerful men who associated themselves with kings, priests and ascetics, affirming the regal and martial form of the caste ideal, and it also reshaped many apparently casteless social groups into differentiated caste communities.
Bayly, Caste, Society and Politics (2001), pp. 26–27
जाति व्यवस्था का आधुनिक रुप , मुगल साम्राज्य के पतन और ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य के उदय के दौरान उत्पन्न हुआ था|मुगल साम्राज्य के पतन के फलस्वरुप एक (उत्पन्न सत्ता शून्य मे) ऎसे वर्ग का उदय हुआ जो सत्ता के निकट था| इस वर्ग ने जाति को पुर्ण रूप मे स्थापित किया| मुगल युग के पतन के दौरान राजाओं, सत्ता से जुड़े शक्तिशाली वर्ग का उदय देखा गया था| इस वर्ग  ने जातिहीन सामाजिक समूहों को कई अलग-अलग जाति समुदायों में  बदल दिया।

British Raj furthered this development, making rigid caste organisation a central mechanism of administration.
Bayly, Caste, Society and Politics (2001)
Between 1860 and 1920, the British segregated Indians by caste, granting administrative jobs and senior appointments only to the upper castes. Social unrest during the 1920s led to a change in this policy. From then on, the colonial administration began a policy of positive discrimination by reserving a certain percentage of government jobs for the lower castes.
Burguière & Grew (2001), pp. 215–229
Caste-based differences have also been practised in other regions and religions in the Indian subcontinent like Nepalese Buddhism, Christianity, Islam, Judaism and Sikhism. It has been challenged by many reformist Hindu movements, Islam, Sikhism, Christianity, and also by present-day Indian Buddhism. https://en.wikipedia.org/wiki/Caste_system_in_India
ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य ने इस जाति व्यवस्था को प्रशासन मे जगह देकर और पक्का कर दीया |ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य ने १८६०-१९२० के दौरान जाति के अनुसार नौकरियाँ दी. ऊँचे पदों पर उच्च जाति वालों  को ही नौकरी दी जाती थी|१९२० के दौरान हुए सामाजिक आंदोलनों के कारण, ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य ने इस व्यवस्था में बदलाव कीये और छोटि जातियों को आरक्षण दीया |जाति आधारित भेदभाव पूरे भारतीय उपमहाव्दीप (नेपाली बुद्धिस्म, ईसाई, इस्लाम, यहूदी और शिखिस्म) के हर धर्म में होत था|
Varna System:वर्ण व्यवस्था
Varna is a Sanskrit term varṇa (वर्णः). It is derived from the root vṛ, meaning "to cover, to envelop, count, classify consider, describe or choose" (compare vṛtra).
The word appears in the Rigveda, where it means "colour, outward appearance, exterior, form, figure or shape". The word means "color, tint, dye or pigment" in the Mahabharata. Varna contextually means "colour, race, tribe, species, kind, sort, nature, character, quality, property" of an object or people in some Vedic and medieval texts. Varna refers to four social classes in the Manusmriti.
वर्ण का मूल शब्द व्र है. इसका उपयोग  “गिनने, वर्गीकृत करने, वर्णन करने या चुनने के लिए” होता है|यह शब्द ऋग्वेद में प्रकट होता है, जहां इसका मतलब है “रंग, बाहरी रूप, आकृति या आकार”|महाभारत में इस शब्द का मतलब है "रंग या डाई”| कुछ वैदिक और मध्ययुगीन ग्रंथों में वर्ग शब्द का (प्रासंगिक रूप में) मतलब है "रंग, जाति, जनजाति, प्रजातियां, दयालु, प्रकार, प्रकृति, चरित्र, गुणवत्ता, संपत्ति“ वर्ग शब्द, मनुस्मृति में चार सामाजिक वर्गों को दर्शाता है।
The earliest application to the formal division into four social classes (without using the term varna) appears in the late Rigvedic Purusha Sukta, which has the Brahman, Rajanya (instead of Kshatriya), Vaishya and Shudra classes forming the mouth, arms, thighs and feet at the sacrifice of the primordial Purusha, respectively. A good deal of the language is still obscure and many hymns as a consequence are unintelligible.
https://en.wikipedia.org/wiki/Rigveda
https://en.wikipedia.org/wiki/Purusha_Sukta
चार सामाजिक वर्गों (वर्ण शब्द के उपयोग के बिना) औपचारिक विभाजन का सबसे पुराना वर्णन उत्तर ऋग्वेदिक काल के पुरुष सुक्त में दिखाई देता है| आद्य पुरुष के बलिदान के फलस्वरुप ब्राह्मण, राजान्या (क्षत्रिय के बजाय), वैश्य और शुद्र क्रमशः मुंह, बाहों, जांघों और पैरों उत्पन्न से होते हैं।ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है।ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें १०२८ सूक्त हैं और कुल १०,५८० ॠचाएँ हैं।
इसका कुछ हिस्सा अभी भी अस्पष्ट है और नतीजतन कुछ ॠचाएँ अस्पष्ट है|
Purusha sukta (puruṣasūkta) is hymn 10.90 of the Rigveda, dedicated to the Purusha, the "Cosmic Being". Many 19th and early 20th century western scholars suggest that it was interpolated in post-Vedic era, and has a relatively modern origin. It means it may be added later. Stephanie Jamison and Joel Brereton, a professor of Sanskrit and Religious studies, state, "there is no evidence in the Rigveda for an elaborate, much-subdivided and overarching caste system", and "the varna system seems to be embryonic in the Rigveda and, both then and later, a social ideal rather than a social reality". This is the only hymn which talks about varna. (One hymn in 1028 hymns).
पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त यानि मंत्र संग्रह (10.90) है|वेदों (और सांख्य शास्त्र में) में पुरुष शब्द का अर्थ जीवात्मा तथा परमात्मा आया है, पुरुष लिंग के लिए पुमान और पुंस जैसे मूलों का इस्तेमाल होता है।19वीं और 20 वीं शताब्दी के पश्चिमी विद्वानों का सुझाव है कि इसे वैदिक युग के बाद में जोड़ा गया  था, और इसकी अपेक्षाकृत आधुनिक उत्पत्ति है। संस्कृत और धार्मिक अध्ययन के प्रोफेसरों ने कहा, "एक विस्तृत, अति-विभाजित और परिपक्व जाति व्यवस्था के कोई सबूत ऋग्वेद में नहीं है" और "वर्ण प्रणाली ऋग्वेद में भ्रूण अवस्था मे प्रतीत होती है और उस समय और उसके बाद के समय में , यह सामाजिक हकीकत के बजाय सामाजिक आदर्श था।यह एकमात्र सूक्त है जो वर्ण के बारे में बात करता है। (1028 सूक्त में एक सूक्त)
Varna system is extensively discussed in Dharmasastras. Recent scholarship suggests that the discussion of varna as well as untouchable outcastes, in these texts does not resemble the modern era caste system in India. Patrick Olivelle, a professor of Sanskrit and Indian Religions and credited with modern translations of Vedic literature, Dharma-sutras and Dharma-sastras, states that ancient and medieval Indian texts do not support the ritual pollution, purity-impurity as the basis for varna system. Olivelle adds that the overwhelming focus in matters relating to purity/impurity in the Dharma-sastra texts concerns "individuals irrespective of their varna affiliation" and all four varnas could attain purity or impurity by the content of their character, ethical intent, actions, innocence or ignorance, stipulations, and ritualistic behaviors.
Olivelle, Patrick (2008). Chapter 9. Caste and Purity in Collected essays. Firenze, Italy: Firenze University Press. pp. 240–241.
धर्मशास्त्र में वर्ण व्यवस्था पर व्यापक चर्चा की गई है।हाल के शोध से पता चलता है कि इन ग्रंथों में जो वर्ण व्यवस्था और अस्पृश्यों की चर्चा है, वह भारत की आधुनिक युग जाति व्यवस्था के समान नहीं है।पैट्रिक ओलिवेल एक भारतविद हैं। वे एक भाषाविद और संस्कृत साहित्य के विद्वान हैं जिनका कार्य तप, त्याग और धर्म पर केंद्रित है। ओलिवेल, टेक्सास विश्वविद्यालय, आॅस्टिन में एशियाई अध्ययन विभाग में भारतीय धर्म और संस्कृत के प्रोफेसर हैं।वह कहते हैं कि प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय ग्रंथ कर्मकांडी प्रदूषण, शुद्धता-अशुद्धता का समर्थन वर्ण व्यवस्था के आधार पर नहीं करते हैं।
Olivelle adds that the overwhelming focus in matters relating to purity/impurity in the Dharma-sastra texts concerns "individuals irrespective of their varna affiliation" and all four varnas could attain purity or impurity by the content of their character, ethical intent, actions, innocence or ignorance, stipulations, and ritualistic behaviours. Olivelle writes, "we see no instance when a term of pure/impure is used with reference to a group of individuals or a varna or caste". The only mention of impurity in the Shastra texts from the 1st millennium is about people who commit grievous sins and thereby fall out of their varna. These, writes Olivelle, are called "fallen people" and impure, declaring that they be ostracised.
Olivelle, Patrick (2008). Chapter 9. Caste and Purity in Collected essays. Firenze, Italy: Firenze University Press. Olivelle, Patrick (1998). "Caste and Purity: A Study in the Language of the Dharma Literature". Contribution to Indian Sociology. 
ओलिवेल कहते हैं कि धर्म-शास्त्र ग्रंथों में शुद्धता / अशुद्धता से संबंधित मामलों में जबरदस्त फोकस व्यक्तियों की शुद्धता / अशुद्धता पर हैं न उनके वर्ण पर|ओलिवेल कहते हैं कि धर्म-शास्त्र ग्रंथों में शुद्धता / अशुद्धता से संबंधित मामलों में जबरदस्त फोकस व्यक्तियों की शुद्धता / अशुद्धता पर हैं न उनके वर्ण पर और सभी चार वर्ण अपने चरित्र, नैतिक इरादे, कार्यों, अज्ञानता, शर्तों, और अनुष्ठान व्यवहार के आधार पर शुद्धता या अशुद्धता प्राप्त कर सकते हैं|वह लिखते हैं, "हमें कोई उदाहरण नहीं दिखता है जब शुद्धता / अशुद्धता की चर्चा व्यक्तियों के समूह या वर्ण या जाति के संदर्भ में की जाती है"।पहली सहस्राब्दी से शास्त्र ग्रंथों में अशुद्धता का एकमात्र उल्लेख उन लोगों के बारे में है जो गंभीर पाप करते हैं और इस तरह वे वर्ण व्यवस्था से बहिष्कृत कर दीयॆ जाते हैं तथा इन्हॆं पतित माना जात था|
The first three varnas are described in the some Dharmasastras as "twice born" and they are allowed to study the Vedas. Such a restriction of who can study Vedas is not found in the Vedic era literature.
Manusmriti assigns cattle rearing as Vaishya occupation but historical evidence shows that Brahmins, Kshatriyas and Shudras also owned and reared cattle and that cattle-wealth was mainstay of their households. Ram narayan Rawat, a professor of History and specialising in social exclusion in the Indian subcontinent, states that 19th century British records show that Chamars, listed as untouchables, also owned land and cattle and were active agriculturalists. The emperors of Kosala and the prince of Kasi are other examples.
Kumar, Arun (2002). Encyclopaedia of Teaching of Agriculture. Anmol Publications. p. 411.
Rawat, Ramnarayan (2011). Reconsidering untouchability : Chamars and Dalit history in North India. Bloomington: Indiana University Press.
पहले तीन वर्णों को कुछ धर्मशास्त्रों में "दो बार पैदा हुए (द्विज)" के रूप में वर्णित किया गया है और उन्हें वेदों का अध्ययन करने की अनुमति थी | हालांकि, वेदों का अध्ययन करने से संबंधित प्रतिबंध वैदिक युग के साहित्य में नहीं पाए जाते हैं। मनुस्मृति, वैश्य व्यवसाय के रूप में मवेशी पालन को मानता है लेकिन ऐतिहासिक सबूत बताते हैं कि ब्राह्मणों, क्षत्रिय और शुद्रों के पास भी मवेशियों का स्वामित्व था और उन्होनें ने मवेशी पालन भी किया था| मवेशी धन उनके घरों का मुख्य आधार था। 
भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक बहिष्कार के इतिहास में विशेषज्ञता रखने वाले प्रोफेसर राम नारायण रावत कहते हैं कि 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश रिकॉर्ड बताते हैं कि अस्पृश्यों के रूप में सूचीबद्ध चमारों के पास भूमि और मवेशी भी थे और वे सक्रिय कृषिविद थे।कोसाल के सम्राट और काशी के राजकुमार अन्य उदाहरण हैं।
The Mahabharata, estimated to have been completed by about the 4th century CE, discusses the Varna system in section 12.181.
The Epic offers two models on Varna. The first model describes Varna as colour-coded system, through a sage named Bhrigu, "Brahmins Varna was white, Kshtriyas was red, Vaishyas was yellow, and the Shudras' black". This description is questioned by another prominent sage Bharadvaja who says that colours are seen among all the Varnas, that desire, anger, fear, greed, grief, anxiety, hunger and toil prevails over all human beings, that bile and blood flow from all human bodies, so what distinguishes the Varnas, he asks? The Mahabharata then declares, according to Alf Hiltebeitel, a professor of religion, "There is no distinction of Varnas. This whole universe is Brahman. It was created formerly by Brahma, came to be classified by acts.“
Hiltebeitel, Alf (2011). Dharma : its early history in law, religion, and narrative. Oxford University Press. pp. 529–531.
महाभारत का चौथी शताब्दी सीई तक पूरा होने का अनुमान है। यह 12.181 में वर्ण व्यवस्था पर चर्चा करता है। महाभारत वर्ण व्यवस्था पर दो मॉडल पेश करता है। पहला मॉडल वर्ण व्यवस्था को रंग के आधार पर वर्णित करता है, भृगु नाम के ऋषि कहते हैं "ब्राह्मण सफेद थे, क्षत्रिय लाल थे, वैश्य पीले थे, और शूद्र काले थे|”इस वर्णन को एक अन्य प्रमुख ऋषि भारद्वाज ने चुनौती दी है वह पूछ्ते हैं कि वासना क्रोध, भय, लालच, दुःख, चिंता, भूख और परिश्रम वैयक्तिक पर निर्भर करता है तथा सभी मानवों में पित्त और रक्त प्रवाह होता है, तथा यह रंग सभी वर्ण में देखे जाते हैं; इसलिए वर्णों में क्या अंतर है? महाभारत में तब घोषणा की जाती है, " वर्णों में कोई भेद नहीं है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ब्रह्म है। इसे ब्रह्मा द्वारा बनाया गया था, इसे कृत्यों द्वारा वर्गीकृत किया गया था ।" 
Ancient Buddhist texts mention Varna system in South Asia, but the details suggest that it was a non-rigid, flexible and with characteristics devoid of features of a social stratification system. Maurice Walshe, a German scholar and translator of Digha Nikaya, provides a discussion between Gotama Buddha and a Hindu Brahmin named Sonadanda who was very learned in the Vedas. Peter Masefield, a Buddhism scholar and ancient Pali texts translator, states that during the Nikāya texts period of Buddhism (3rd century BC to 5th century AD), Varna as a class system is attested, but the described Varna was not a caste system. 
Masefield, Peter (2008). Divine revelation in Pali Buddhism. Routledge. pp. 146–154.
Walshe, Maurice (1995). The long discourses of the Buddha : a translation of the Dīgha Nikāya. Boston: Wisdom Publications.
प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में दक्षिण एशिया की वर्ण व्यवस्था का उल्लेख है, लेकिन विवरण बताते हैं कि यह एक लचीला सामाजिक वर्गीकरण व्यवस्था थी ।मॉरीस वाल्श, एक जर्मन विद्वान और दीर्घनिकाय के अनुवादक  गौतम बुद्ध और एक हिंदू ब्राह्मण के बीच चर्चा का विवरण बताते हैं| एक बौद्ध धर्म विद्वान और प्राचीन पाली ग्रंथ अनुवादक पीटर मासफील्ड बताते हैं की निकाय (सुत्तपिटक बौद्ध ग्रंथों) में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख सामाजिक वर्गीकरण व्यवस्था के रूप में है, लेकिन जाति व्यवस्था के रूप में नहीं है |
Masefield notes that people in any Varna could in principle perform any profession. The early Buddhist texts, for instance, identify some Brahmins to be farmers and in other professions. The text state that anyone, of any birth, could perform the priestly function, and that the Brahmin took food from anyone, suggesting that strictures of commensality were as yet unknown. The Tantric movement that developed as a tradition distinct from orthodox Hinduism between the 8th and 11th centuries CE also relaxed many societal strictures regarding class and community distinction. However it would be an over generalisation to say that the Tantrics did away with all social restrictions.
पीटर मासफील्ड बताते हैं कि किसी भी वर्ण के लोग किसी पेशे में सैद्धांतिक रूप से काम कर सकते थे| उदाहरण के लिए प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथ बताते हैं कुछ ब्राह्मणों ने किसानों और अन्य व्यवसायों में काम किया। शास्त्रों में कहा गया है कि कोई भी पुजारी कार्य कर सकता था , और ब्राह्मण किसी से भी भोजन दान में ले लेते थे|तन्त्र, परम्परा से जुड़े हुए आगम ग्रन्थ हैं। 8 वीं और 11 वीं शताब्दी सीई के बीच रूढ़िवादी हिंदू धर्म से अलग परंपरा के रूप में विकसित तांत्रिक आंदोलन ने सामुदायिक भेदभाव के संबंध में सामाजिक कठोरता को भी कम किया।
Ādi purāṇa, an 8th-century text of Jainism by Jinasena, is the earliest mention of Varna and Jati in Jainism literature. Jinasena does not trace the origin of Varna system to Rigveda or to Purusha Sukta, instead traces varna to the Bharata legend. According to this legend, Bharata performed an "ahimsa-test" (test of non-violence), and those members of his community who refused to harm or hurt any living being were called as the priestly varna in ancient India, and Bharata called them dvija, twice born. Jinasena states that those who are committed to ahimsa are deva-Brāhmaṇas, divine Brahmins. Sikh text mention Varna as Varan, and Jati as Zat or Zat-biradari. 
Jaini, Padmanabh (1998). The Jaina path of purification. Motilal Banarsidass. 
आदिपुराण जैनधर्म का एक प्रख्यात पुराण है जो सातवीं शताब्दी में जिनसेन आचार्य द्वारा लिखा गया था।आदिपुराण (जैन धर्म साहित्य में)में वर्ण और जाति का सबसे पुराना उल्लेख है|जिनसेन वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति को ऋग्वेद या पुरुष सुक्त से नहीं बताते हैं, बल्कि राजा भरत की कथा के रूप में के वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति को बताते हैं|इस पौराणिक कथा के अनुसार, भरत ने "अहिंसा परीक्षण" किया, और उनके समुदाय के जिन सदस्यों ने किसी भी जीवित व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने या चोट पहुंचाने से इंकार कर दिया, उन्हें प्राचीन भारत में पुजारी वर्ण कहा जाता था, और भरत उन्हें द्विज (दो बार पैदा हुआ) बताते हैं ।जिनसेन आचार्य का कहना है कि जो लोग अहिंसा के प्रति प्रतिबद्ध हैं वे देव-ब्राह्मण, दैवीय ब्राह्मण हैं।१८वीं सदी के सिख साहित्य में, ‘वर्ण’ शब्द वर्ण व्यवस्था के संदर्भ में, और जात या जात - बिरादरी के रूप में जाति व्यवस्था का उल्लेख है । जात ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान विशेष रूप से जाति व्यवस्था के रूप विकसित किया गया था ।


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